*बेनामी संपत्ति का बड़ा खेल – भूमाफियाओं और उसके दलाल ने किया फर्जीवाड़े के साथ कब्जा,पुलिस और राजस्व अधिकारियों की कार्यप्रणाली संदेह के दायरे में?…*

*रायपुर*।छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में राज्य निर्माण के बाद से ही राजस्व रिकार्ड में भारी फर्जीवाड़ा, फर्जी रजिस्ट्री और नामांतरण,भूमाफियाओं का ज़मीनों पर अवैध कब्जे, फर्जीवाड़ों से जमीनों का लेनदेन, अवैध प्लॉटिंग करने के दर्जनों मामला आए दिन देखने को मिल रहे है।

राजधानी रायपुर के राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित डूमरतराई इलाके में मेन रोड पर शीतल दास माखीजा की कई करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति थी, जिसे माखीजा परिवार ने कुछ वर्षों पूर्व लाखे नगर के सिंधी समाज के ही 9 लोगों के नाम पर खरीदी थी। कुछ समय पश्चात ही जब जमीन को लेकर गड़बड़ी तथा करोड़ों की जमीन पर नियत खराब होने की आशंका हुई तब जनवरी 2018 में पंजीकृत हक त्याग विलेख कराया गया। इसके बाद भूमाफियाओं का खेल शुरू हुआ। 9 व्यक्तियों के नाम दर्ज जमीन में 3 की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी, जबकि यह तीनों मृत व्यक्तियों के नाम उक्त भूमि भूस्वामियों के रूप में दर्ज थी। इसके बावजूद मृत तीनों व्यक्तियों के साथ नौ व्यक्तियों के हस्ताक्षर भी फर्जी रूप से तैयार की गई पॉवर ऑफ अटॉर्नी में लिए गए। यह पॉवर ऑफ अटॉर्नी प्रशांत शर्मा नामक व्यक्ति के नाम पर बनाया गया। इस फर्जी पॉवर ऑफ अटॉर्नी के जरिए यह जमीन हीरापुर सुनील डेयरी निवासी गजानंद मेश्राम को बेच दी जाती है जहां इस जमीन का सौदा 1 करोड़ 70 लाख रुपए में दर्शाया गया और इसके बाद दोबारा इसी जमीन का सौदा महेश गोयल तथा विशाल शर्मा टाटीबंध को 2 करोड़ 41 लाख रुपए में बेची जाती है ऐसा दिखाया गया। इसमें पैसों का लेन-देन सिर्फ कागजों में दर्शाया गया है वास्तविक रूप से पैसों का कोई लेना-देना हुआ ही नहीं। आश्चर्य इस बात का है कि गजानंद मेश्राम तथा विशाल शर्मा के घर का पता हूबहू एक ही दर्शाया गया है, मकान का नंबर भी एक जैसा है।
*बेनामी संपत्ति पर अपना दावा करने वाले कपड़ा व्यवसायी माखीजा ने भी जमीन का कोई दस्तावेजी प्रमाण नही बताया:*
शीतल दास मखीजा का कहना है कि इस जमीन की फर्जी रजिस्ट्री हुई है। इसमें 9 अलग व्यक्तियों को जो कि वास्तविक रूप में वो 9 लोग नही थे जिनके नाम पर ये बेशकीमती जमीन थी उनसे फर्जी पावर आफ अटर्नी ली गई। इनके फर्जी आधार कार्ड एवं पैन कार्ड बनवाना कर उप पंजीयक कार्यालय पाटन जिला दुर्ग में जमीन की पॉवर ऑफ अटॉर्नी बनाई गई है। जब की ज़मीन राजधानी के डुमरतराई स्थित मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग मार्ग पर मेंन रोड के ऊपर की है तो पावर आफ अटर्नी के लिए पाटन जैसा इलाका क्यों चुना गया सबसे ज्वलंत मुद्दा तो यही है।
शीतल दास के अनुसार मूल रूप से इस जमीन का सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा यह है कि प्रशांत शर्मा नामक व्यक्ति ने यह पॉवर ऑफ अटॉर्नी 9 फर्जी व्यक्तियों से अपने नाम पर बनवाई है जो कि लाखे नगर स्थित डा. लालवानी क्लिनिक के पीछे रहने वाले हैं,जिनमें कोई ठेले वाला है, रिक्शे वाला है या पंचर दुकान लगाता है। ऐसे लोगों को ले जाकर यह पॉवर ऑफ अटॉर्नी बनाई गई है। माखीजा का यह भी कहना है कि वहां के दस्तावेज लेखक और साहब को पैसे देकर यह पॉवर ऑफ अटॉर्नी को गलत तरीके से बनवाया गया है। साथ ही गलत तरीके से रायपुर के पंजीयन कार्यालय में बैनामा – पंजीयन कराया गया है। ये बैनामा पंजीयन किसी गजानंद मेश्राम के नाम पर कराया गया है, जो एक फर्जी व्यक्ति है। प्रशांत शर्मा भी एक फर्जी व्यक्ति है। माखीजा का कहना यह भी है कि असली 9 लोग कोई और ही हैं जिन्होंने पावर आफ अटर्नी में दस्तखत भी नही किए हैं। वहीं माखीजा ने बताया कि उन्होंने आयकर विभाग में डिक्लेरेशन देकर आईडीएस स्कीम के तहत इस बेनामी संपत्ति को आयकर में घोषित कर दिया है, पंरतु इस संबंधित कोई भी पेपर उन्होंने नहीं दिखाया।
प्रशांत शर्मा के नाम पर फर्जी पॉवर ऑफ अटॉर्नी बनाने के बाद इस जमीन की बिक्री गजानंद मेश्राम को की गई। इसके बाद गजानंद मेश्राम द्वारा यह जमीन विशाल शर्मा तथा महेश गोयल को बेच दी गई। माखीजा के अनुसार ये सभी गलत तरीके से जमीनों का फर्जी कारोबार करते हैं। इनका कहना है कि पॉवर ऑफ अटॉर्नी पूरी तरह से शून्य और अवैध है।शीतलदास मखीजा का कहना है कि बेनामी संपत्ति को डिक्लेरेशन में आईडीएस स्कीम के तहत अपनी पत्नी के नाम पर कराया गया है। पंरतु इनके द्वारा इस बेनामी संपत्ति का कोई भी दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत नही किया गया है।
*उप पंजीयन कार्यालय,माना थाना से लेकर रायपुर रजिस्ट्री कार्यालय के अधिकारियों की कार्यप्रणाली भी संदेह के दायरे में:*
माना पुलिस थाने में इस मामले की तस्दीक करने पर थाना प्रभारी ने बताया कि कई बार शीतल दास मखीजा को बयान के लिए बुलाया जा चुका है लेकिन,सूचना देने के बाद भी वो अपना बयान दर्ज कराने थाने नही आ रहे हैं। इस पर प्रार्थी शीतल दास मखीजा का कहना है कि थाने से आज तक एक बार भी बयान के लिए उन्हें कोई नोटिस नही आया है। ना कागजी तौर से, ना मौखिक, ना ही फोन से, या किसी भी प्रकार से कोई सूचना उन्हें माना थाने से नही दी गई है। इस मामले पर विशाल शर्मा से भी संपर्क कर उनका पक्ष जानना चाहा गया लेकिन उन्होंने मिलकर बात करता हूं फोन पर सारी बात नही हो पाएगी कहकर पल्ला झाड़ लिया गया।
पाटन रजिस्ट्री ऑफिस में इस मामले पर उप पंजीयक से बात करने पर उनके द्वारा कैमरे के सामने कुछ भी कहने से इनकार किया गया लेकिन इस मामले की गंभीरता और पूरे मामले को स्वीकार किया गया और कहा गया कि यह उनके कार्यकाल में नही हुआ बल्कि पूर्ववर्ती उप पंजीयक शशिकांत पात्रे के कार्यकाल में हुआ है।
कई करोड़ के इस पूरे जमीन फर्जीवाड़े में जिला प्रशासन,पुलिस प्रशासन से लेकर रजिस्ट्री ऑफिस के अधिकारियों सहित कई कर्मचारी-अधिकारियों की कार्यप्रणाली संदेह के दायरे में दिखाई दे रही है। अब यह देखना गौरतलब होगा कि इस तरह के भूमाफियाओं और फर्जीवाड़े के मामले पर सरकार द्वारा क्या कड़ी कार्यवाही की जाती है?

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